Surya Mandir

                                                                      Surya Mandir

इस surya mandir परिसर का निर्माण एक ही समय में नहीं हुआ था। मुख्य मन्दिर, चालुक्य वंश के भीमदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। इससे पहले, 1024-25 के दौरान, गजनी के महमूद ने भीम के राज्य पर आक्रमण किया था, और लगभग 20,000 सैनिकों की एक टुकड़ी ने उसे मोढेरा में रोकेने का असफल प्रयास किया था। इतिहासकार ए. के. मजूमदार के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण इस रक्षा के स्मरण के लिए किया गया हो सकता है। परिसर की पश्चिमी दीवार पर, उल्टा लिखा हुआ देवनागरी लिपि में “विक्रम संवत 1083” का एक शिलालेख है, जो 1026-1027 सीई के अनुरूप है। कोई अन्य तिथि नहीं मिली है। जैसा कि शिलालेख उल्टा है, यह मन्दिर के विनाश और पुनर्निर्माण का सबूत देता है। शिलालेख की स्थिति के कारण, यह दृढ़ता से निर्माण की तारीख के रूप में नहीं माना जाता है।

शैलीगत आधार पर, यह ज्ञात है कि इसके कोने के मंदिरों के साथ कुंड 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। शिलालेख को निर्माण के बजाय गजनी द्वारा विनाश की तारीख माना जाता है। इसके तुरंत बाद भीम सत्ता में लौट आए थे। इसलिए मंदिर का मुख्य भाग, लघु और कुंड में मुख्य मंदिर 1026 ई के तुरन्त बाद बनाए गए थे। 12वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही में द्वार, मंदिर के बरामदे और मंदिर के द्वार और कर्ण के शासनकाल के दौरान कक्ष के द्वार के साथ नृत्य कक्ष को बहुत बाद में जोड़ा गया था।

इस स्थान को बाद में स्थानीय रूप से सीता नी चौरी और रामकुंड के नाम से जाना जाने लगा। अब यहाँ कोई पूजा नहीं की जाती है। मंदिर राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देखरेख में है।

Surya Mandir Ka Nirman Kisne Karvaya Tha
इस surya mandir परिसर का निर्माण एक ही समय में नहीं हुआ था। मुख्य मन्दिर, चालुक्य वंश के भीमदेव प्रथम के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। इससे पहले, 1024-25 के दौरान, गजनी के महमूद ने भीम के राज्य पर आक्रमण किया था, और लगभग 20,000 सैनिकों की एक टुकड़ी ने उसे मोढेरा में रोकेने का असफल प्रयास किया था। इतिहासकार ए. के. मजूमदार के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण इस रक्षा के स्मरण के लिए किया गया हो सकता है।[5] परिसर की पश्चिमी दीवार पर, उल्टा लिखा हुआ देवनागरी लिपि में “विक्रम संवत 1083” का एक शिलालेख है, जो 1026-1027 सीई के अनुरूप है। कोई अन्य तिथि नहीं मिली है। जैसा कि शिलालेख उल्टा है, यह मन्दिर के विनाश और पुनर्निर्माण का सबूत देता है।

शिलालेख की स्थिति के कारण, यह दृढ़ता से निर्माण की तारीख के रूप में नहीं माना जाता है। शैलीगत आधार पर, यह ज्ञात है कि इसके कोने के मंदिरों के साथ कुंड 11वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। शिलालेख को निर्माण के बजाय गजनी द्वारा विनाश की तारीख माना जाता है। इसके तुरंत बाद भीम सत्ता में लौट आए थे। इसलिए मंदिर का मुख्य भाग, लघु और कुंड में मुख्य मंदिर 1026 ई के तुरन्त बाद बनाए गए थे। 12वीं शताब्दी की तीसरी तिमाही में द्वार, मंदिर के बरामदे और मंदिर के द्वार और कर्ण के शासनकाल के दौरान कक्ष के द्वार के साथ नृत्य कक्ष को बहुत बाद में जोड़ा गया था।

इस स्थान को बाद में स्थानीय रूप से सीता नी चौरी और रामकुंड के नाम से जाना जाने लगा। अब यहाँ कोई पूजा नहीं की जाती है। मंदिर राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देखरेख में है।

Surya Mandir Kisne Banwaya
प्रचलित मान्यता के अनुसार इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्माने सिर्फ एक रात में किया है। इस मंदिर के बाहर पाली लिपि मेंं लिखित अभिलेख मिलने से पुरातत्वविद इस मंदिर का निर्माण काल आठवीं-नौवीं सदी के बीच का मानते हैं। मंदिर के नामकरण व निर्माण को लेकर अनुश्रुतियां अपनी जगह हैं, पुरातात्विक प्रमाण भी इसकी प्राचीनता की ओर इशारा करते हैं।

Surya Mandir Kisne Banwaya
Surya Mandir, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।

deo sun temple
भारत, मंदिरों का देश है, जहां हर देवता के लिए विशेष मंदिर बनाए गए हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला, धार्मिक महत्ता और ऐतिहासिक संदर्भ न केवल भारत के लोगों को आकर्षित करते हैं बल्कि विदेशियों के लिए भी यह एक अध्ययन का विषय है। इन मंदिरों में से एक महत्वपूर्ण स्थान सूर्य मंदिरों का है, जो सूर्य देवता को समर्पित होते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित सूर्य मंदिरों का धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है।

सूर्य मंदिर का महत्व
सूर्य देवता हिंदू धर्म में नवग्रहों में प्रमुख माने जाते हैं। उनका पूजन स्वस्थ्य, धन और सफलता के लिए किया जाता है। सूर्य देवता को अर्घ्य देना, व्रत रखना और surya mandir में पूजा करना सूर्य की अनुकम्पा प्राप्त करने का एक प्रमुख माध्यम माना जाता है। सूर्य देवता के मंदिरों में सबसे प्रमुख और विख्यात मंदिरों में कोणार्क का सूर्य मंदिर, गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर और उत्तर प्रदेश का उत्तरकासी सूर्य मंदिर शामिल हैं।

कोणार्क का सूर्य मंदिर
ओडिशा में स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने करवाया था। इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।

कोणार्क का surya mandir अपनी अद्वितीय वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर को एक रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें 24 पहिए और 7 घोड़े जुड़े हुए हैं। यह रथ सूर्य देवता के आकाश में उनके दैनिक मार्ग का प्रतीक है। मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी और मूर्तियां देखने को मिलती हैं, जो उस समय की कला और संस्कृति का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

मोढेरा का सूर्य मंदिर
गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित मोढेरा का सूर्य मंदिर, स्थापत्य कला का एक अद्वितीय उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ईस्वी में करवाया था। यह मंदिर भी एक रथ के आकार में बना हुआ है, जिसमें 12 पहिए और 7 घोड़े हैं, जो सूर्य के 12 महीनों और सप्ताह के 7 दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मोढेरा का surya mandir सूर्योदय की दिशा में स्थित है, जिससे सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें सीधे गर्भगृह में प्रवेश करती हैं। मंदिर परिसर में एक विशाल कुंड (सूर्य कुंड) भी स्थित है, जिसमें 108 छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। इस कुंड की सीढ़ियां और दीवारें शानदार नक्काशी से सजी हुई हैं।

उत्तरकासी का सूर्य मंदिर
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित उत्तरकासी का सूर्य मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है और इसकी स्थापना की तिथि का ठीक-ठीक पता नहीं है। हालांकि, यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और इसका पुनर्निर्माण कई बार किया गया है।

उत्तरकासी का सूर्य मंदिर विशेष रूप से माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होने वाले धार्मिक उत्सव के लिए प्रसिद्ध है, जिसे ‘सूर्य सप्तमी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन सूर्य देवता की पूजा करते हैं और उनसे सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण सूर्य मंदिर
सूर्य देवता को समर्पित अन्य महत्वपूर्ण मंदिरों में बिहार का देव सूर्य मंदिर, राजस्थान का रणकपुर सूर्य मंदिर, मध्य प्रदेश का छतरपुर सूर्य मंदिर और जम्मू-कश्मीर का मार्तंड सूर्य मंदिर शामिल हैं। ये सभी मंदिर वास्तुकला, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

1. देव सूर्य मंदिर (बिहार):
बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर, भारत के प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अपने अनूठे वास्तुशिल्प और पुरानी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां छठ पूजा के दौरान बड़ी संख्या में भक्त एकत्र होते हैं।

2. रणकपुर सूर्य मंदिर (राजस्थान):
राजस्थान के रणकपुर में स्थित यह मंदिर 13वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह मंदिर अपने जटिल शिल्प और विशेष नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। रणकपुर का यह सूर्य मंदिर भी जैन धर्म के अनुयायियों के बीच काफी मान्यता प्राप्त है।

3. छतरपुर सूर्य मंदिर (मध्य प्रदेश):
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित इस सूर्य मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यहां के स्थानीय लोग सूर्य देवता की पूजा आराधना के लिए विशेष रूप से यहां आते हैं।

4. मार्तंड सूर्य मंदिर (जम्मू-कश्मीर):
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर, कश्मीर की घाटी का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर 7वीं और 8वीं शताब्दी के बीच कर्कोटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तपीड द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला और कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

konak nu surya mandir
कोणार्क का सूर्य मंदिर, ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित, भारतीय वास्तुकला का एक अद्वितीय और अद्भुत नमूना है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और इसे 13वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।

surya mandir को एक विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें बारह जोड़ी पहिए हैं और इसे सात घोड़ों द्वारा खींचते हुए दिखाया गया है। यह रथ सूर्य देवता के आकाश में यात्रा का प्रतीक है। मंदिर की संरचना और सजावट में गहन गणितीय और खगोलीय ज्ञान का उपयोग किया गया है, जो उस समय की वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाता है। हर पहिया में 24 तीलियाँ हैं, जो 24 घंटों को दर्शाती हैं, और घोड़ों की दिशा पूर्व की ओर है, जो सूर्य के उदय की दिशा है।

surya mandir की दीवारों पर की गई नक्काशी अद्वितीय और प्रभावशाली है। यहाँ के शिल्पकारों ने जीवन के विभिन्न पहलुओं, धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों, और प्राकृतिक तत्वों को बहुत ही कलात्मक ढंग से उकेरा है। इनमें देवताओं, पशुओं, पक्षियों, नृत्य, संगीत, और प्रेम की मुद्राओं के चित्रण शामिल हैं। ये नक्काशियाँ उस समय की संस्कृति और जीवन शैली का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती हैं।

हालांकि समय के साथ मंदिर का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया है, फिर भी जो बचा है, वह इसकी भव्यता को दर्शाता है। मंदिर का मुख्य शिखर, जो लगभग 230 फीट ऊँचा था, अब गिर चुका है, लेकिन इसके बिना भी मंदिर की शेष संरचना अद्वितीय है। मुख्य गर्भगृह, जहाँ पहले सूर्य देव की विशाल मूर्ति स्थापित थी, अब खंडित हो चुका है, लेकिन मंदिर की दीवारें और स्तंभ आज भी अपनी कहानी कहने के लिए खड़े हैं।

कोणार्क का surya mandir न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारतीय कला, विज्ञान और संस्कृति का प्रतीक भी है। यह स्थान हर साल लाखों पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो यहाँ की अद्भुत वास्तुकला और शिल्पकला को देखने के लिए आते हैं। यह मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक और वैज्ञानिक परंपरा का भी प्रतीक है।

कोणार्क का surya mandir वास्तव में भारतीय धरोहर का एक अनमोल रत्न है, जो हमें हमारे अतीत की समृद्धि और सांस्कृतिक वैभव की याद दिलाता है।

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